॥ अमृत-वाणी - ९ ॥


निरन्तर सत्संग करने से अज्ञान का आवरण हट जाता है और ज्ञान स्वयं प्रकट होने लगता है।
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मन भ्रमित होने से जीवात्मा की चेतन शक्ति विखर जाती है जिससे साधन अवरुद्ध हो जाता है।
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मन को परमात्मा चिंतन में आगे और व्यवहारिक चिंतन में पीछे रखोगे तो मोक्ष की प्राप्ति होगी।
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स्वस्थ तन और धन-सम्पदा यदि प्रारब्ध में होगे तो मिलेंगे ही फ़िर मन को इनमें क्यों फ़ंसाते हो।
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परमात्मा का अंश जीवात्मा, ज़ड प्रकृति के सम्पर्क में आने के कारण चेतन प्रकृति ही कहलाता है।
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आध्यात्मिक शिक्षा का अभाव ही विश्व में भ्रष्टाचार, हिंसा, बलात्कार और पापाचार का मुख्य कारण है।
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यह शरीर और धन-सम्पदा यहीं रह जायेंगे इसलिये इन्हे निजी स्वार्थ मे न लगाकर परमार्थ में लगाओ।
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शक्तिमान और शक्ति की अभिन्नता ही सृष्टि उत्पत्ति का एक मात्र कारण है, इसलिये सृष्टि भी अविनाशी है।
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मन में किसी भी प्रकार का भ्रम नही होता है जब बुद्धि मन का विरोध करती है तब मन भ्रमित हो जाता है।
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मन को व्यवहार मे लगाये बिना भी व्यवहार यथावत चलता रहेगा, कौशिश करके धीरज रखोगे तभी पता चलेगा।
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मन को व्यवहारिक चिंतन में आगे और परमात्मा चिंतन में पीछे रखोगे तो जन्म-मृत्यु के बंधन में फ़ंसे रहोगे।
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परमात्मा का अंश जीवात्मा, ज़ड प्रकृति के सम्पर्क में रहने के कारण मोहग्रस्त होकर सांसारिक बंधन में फ़ंसा रहता है।
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सर्व शक्तिमान परमात्मा की दो मुख्य शक्तियाँ है चेतन प्रकृति (जीवात्मा) और ज़ड प्रकृति (माया) दोनों ही अविनाशी हैं।
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भौतिक शिक्षा से बुद्धि का पूर्ण विकास सम्भव नही है, केवल आध्यात्मिक शिक्षा से ही बुद्धि का पूर्ण विकास हो सकता है।
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जब तक ज़ड और चेतन का संयोग बना है तब तक सभी जीवात्मा किसी न किसी रुप में एक-दूसरे के निमित्त बनते ही रहेंगे।
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