॥ अमृत-वाणी - ६ ॥


जब तक बुद्धि द्वारा मन शरीर (ज़ड प्रकृति) में स्थित रहता है तब तक जीव अज्ञानी ही है, जब बुद्धि द्वारा मन आत्मा (चेतन प्रकृति) में स्थित होने लगता है तभी जीव का अज्ञान दूर होने लगता है।
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परमात्मा सर्व शक्तिमान है ज़ड-प्रकृति और चेतन-प्रकृति परमात्मा की दो मुख्य शक्तियाँ है, सृष्टि की उत्पत्ति का कारण ज़ड-प्रकृति (शरीर) और चेतन-प्रकृति (आत्मा) का संयोग मात्र है।
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बुद्धि का उपयोग केवल तन और धन की शुद्धि के लिये करोगे तो मन की शुद्धि कभी नही होगी, बुद्धि का उपयोग केवल मन की शुद्धि के लिये करोगे तो, तन और धन की शुद्धि स्वत: हो जायेगी हैं।
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परमात्मा के बिना तो सभी अनाथ हैं सभी जीवात्मा एक परमात्मा की ही संतान है, इसलिये एक इष्ट (ईश्वर का कोई एक रुप) में श्रद्धा रखो, एक इष्ट में श्रद्धा ही सभी अनिष्टों से बचने का एक मात्र उपाय है।
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सत्संग के बिना विवेक जाग्रत नही होगा, बिना विवेक जाग्रत हुए सत्य और असत्य का भेद नही जान पाओगे, सत्संग भी भगवान की कृपा से ही मिलता है जब भी सत्संग मिले तो समझो भगवान की कृपा मिल रही है।
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विद्वान वही है जो वेद-शास्त्रों के अनुसार परमात्मा को प्राप्त करने के लिये विधिवत उपासना करे।
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वैरागी वह है जिसका शरीर से विषयों का सम्पर्क रहता है परंतु मन में विषयों का चिंतन नही है।
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उस पूँजी को जमा करो जो साथ जायेगी, ऎसी पूँजी जमा करने से क्या लाभ जो यहीं रह जायेगी।
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सकाम-भाव से जप, तप, पूजा और पाठ करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती है, इसमें कोई संशय नहीं है।
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परमहंस वह होते हैं जो शरीर को प्रकृति में और आत्मा को परमात्मा में सहज-भाव से विलीन कर देते है।
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जीवन की हर परिस्थिति को परमात्मा का प्रसाद समझकर ग्रहण करते हुए भगवान का स्मरण करते रहो।
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जिनके शास्त्रानुसार कर्तव्य-कर्म पूर्ण हो चुके हैं उन्हे अधिक से अधिक एकान्त जीवन यापन करना चाहिये।
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जैसा सोचोगे वैसा ही कर्म होगा इसलिये मन से कभी बुरा मत सोचो तो आप से कभी पाप-कर्म नही होगा।
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संसार में जो कुछ भी हुआ, जो कुछ भी हो रहा है और जो कुछ भी होगा, वह सब भगवान के संकल्प से ही होता है।
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संत वही है जिसकी मन सहित सभी इन्द्रियाँ शान्त रहती है, साधु वही है जिसने मन सहित सभी इन्द्रियाँ को साध लिया है।
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