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श्रीमद् भगवद् गीता
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परमहंस-अवस्था और गोपी-भाव एक ही अवस्था होती है, गोपी-भाव में स्थित जीवात्मा को ही भगवान की शुद्ध भक्ति प्राप्त होती है।
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