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श्रीमद् भगवद् गीता
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जब तक दूसरों में दोषों को खोजते रहोगे तब तक स्वयं के दोषों से अनभिज्ञ रहोगे, तो स्वयं के दोषों का निवारण कैसे होगा।
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