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जो मनुष्य वेद और पुराणों के सार को ही ग्रहण करता है, वही मनुष्य मुक्ति का पात्र बन पाता है, वेद-पुराणों को रटने वाला हमेशा अंहकार से ग्रस्त रहता है।
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