आज का विचार


शास्त्रों के अनुसार कर्म करना "धर्म" कहलाता है, शास्त्रों में वर्णित प्रत्येक व्यक्ति के अपने "नियत कर्म" (देश, समय, स्थान, वर्ण और वर्णाश्रम के अनुसार कर्म) को कर्तव्य समझकर करना ही धर्म कहलाता है, धर्म प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग और निजी होता है, स्वधर्म का पालन करना ही श्रेष्ठ होता है चाहे कितना भी त्रुटि पूर्ण हो।