आध्यात्मिक विचार - 19/12/2010


भगवान के प्रति मन से राग होने पर ही संसार के प्रति मन से बैराग उत्पन्न हो पाता है।

जो व्यक्ति संसार में अपने सभी कर्तव्य कर्मों को भगवान की लीला समझकर और भगवान का आदेश मानकर अपनी भूमिका निभाता है, वही भगवान का सच्चा भक्त और संसार से बैरागी होता है।

जो व्यक्ति न तो किसी की भूमिका में व्यवधान उत्पन्न करता है और न ही किसी के व्यवधान उत्पन्न करने से विचलित होता है, वही व्यक्ति वास्तव में बैरागी मानने योग्य होता है, ऎसा व्यक्ति सभी प्रकार के कार्यों को करते हुए भी कर्म बन्धन से मुक्त रहता है।