आध्यात्मिक विचार - 24-12-2010


मन की केवल दो ही अवस्थाऎं होती है, मन एक समय में एक अवस्था में ही रह सकता है, मन एक अवस्था में संसार में स्थित रहता है और दूसरी अवस्था में भगवान में स्थित रह सकता है।

जीवात्मा का मनुष्य जीवन में जो समय बिना किसी आसक्ति के भगवान में स्थिर रहता है, केवल उसी समय का वास्तविक उपयोग होता है, इसके अतिरिक्त मन संसार में कहीं भी विचरण करता है वह सब समय का दुरुपयोग मात्र ही होता है।

इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन को संसार हटाकर भगवान में स्थिर करने का अभ्यास करना चाहिये।