आध्यात्मिक विचार - 02-01-2011

सांसारिक व्यवहारिकता में तन और धन को ही लगाना चाहिये, मन को केवल भगवान में ही लगाना चाहिये।

मनुष्य़ को पुरुषार्थ करने के लिये शास्त्रों ने (तन, मन और धन) तीन वस्तुओं बताय़ी हैं, सबसे पहले बुद्धि के द्वारा तन में मन को स्थिर करके भौतिक कर्म के द्वारा धन की प्राप्ति की जाती है।

धन की प्राप्ति के बाद बुद्धि के द्वारा तन और धन को संसार के व्यवहार में लगा देना चाहिये, और मन को भगवान के चरणों में स्थिर करने का अभ्यास करना चाहिये, क्योंकि आवश्यकता से अधिक धन प्राप्त होने के बाद मन को संसार में लगाने पर व्यक्ति अपने पतन के मार्ग की ओर चला जाता है।