आध्यात्मिक विचार - 09-01-2011


मनुष्य शरीर रथ के समान है, इस रथ में घोंडे़ (इन्द्रियाँ), लगाम (मन), सारथी (बुद्धि) और रथ के स्वामी जीव (कर्ता-भाव) में और आत्मा (द्रृष्टा-भाव) में रहता है।

जब तक जीव शरीर रुपी रथ को मन रुपी लगाम से बुद्धि रुपी सारथी के द्वारा चलाता रहता है, तब जीव जन्म-मृत्यु के बंधन में फ़ंसकर कर्मानुसार सुख-दुख भोगता रहता है।

जब जीव का विवेक जाग्रत होता है तब मन रुपी लगाम को बुद्धि रुपी सारथी सहित आत्मा को सोंप देता है तब जीव द्रृष्टा-भाव में स्थित होकर मुक्त हो जाता है।