जो व्यक्ति अपने मन की क्रियाशीलता पर ध्यान केन्द्रित रखता है, उसका ही मन स्थिर हो पाता है।
जो व्यक्ति केवल स्वयं के मन में उठने वाले विचारों पर ध्यान केन्द्रित रखता है, वह शीघ्र ही भगवान की कृपा का पात्र बन जाता है।
मानव जीवन भगवान की कृपा पाने के लिये पात्रता हासिल करने के लिये ही मिला है।