आध्यात्मिक विचार - 19-01-2011


जीवात्मा बूँद के समान होता है और परमात्मा सिन्धु समुद्र के समान होता है।

जिस प्रकार जो गुण समुद्र में होते हैं वही गुण समुद्र की बूँद में भी होते हैं, उसी प्रकार जीवात्मा गुणों में परमात्मा के समान ही होता है लेकिन मात्रा में परमात्मा से भिन्न होता है।

जीवात्मा ससीम (सीमित) होता है और परमात्मा असीम (असीमित) होता है, लेकिन जब जीवात्मा अहंकार से ग्रसित होकर स्वयं को परमात्मा समझने लगती है तो वह सांसारिक बन्धन में बँध जाती है।