आध्यात्मिक विचार - 20-01-2011

बुद्धि सहित मन को निज स्वार्थ के भाव से संसार के कार्यों में लगाना भौतिक-कर्म होता है जो कि जन्म-मृत्यु का कारण बनता है।

बुद्धि सहित मन को परमार्थ के भाव से संसार के कार्यों में लगाना आध्यात्मिक-कर्म होता है, जो मुक्ति का कारण बनता है।

जब व्यक्ति सभी सांसरिक वस्तुओं को भगवान की समझकर और सभी प्राणीयों को भगवान का अंश समझकर बिना किसी फल की कामना से परमार्थ में लगाता है तो वही भगवान की वास्तविक भक्ति होती है।