आध्यात्मिक विचार - 22-01-2011

स्वयं को कर्ता समझकर कार्य करना सांसारिक बन्धन का कारण होता है और स्वयं को अकर्ता समझकर कार्य करना मुक्ति का कारण होता है।

जब तक व्यक्ति स्वयं को कर्ता समझकर और आत्मा को अकर्ता समझकर कार्य करता है, तब तक व्यक्ति कर्ता-भाव के कारण कर्म-बंधन में फ़ंसकर कर्म के अनुसार सुख-दुख भोगता है।

जब व्यक्ति स्वयं को अकर्ता समझकर और आत्मा को कर्ता समझकर कार्य करता है, तब जीव अकर्ता-भाव के कारण कर्म बन्धन से शीघ्र मुक्त होकर परम पद को प्राप्त कर जाता है।