आध्यात्मिक विचार - 13-02-2011

भक्ति तो भगवान परम-प्रेम स्वरूप है जिसे शब्दों में न तो बताया जा सकता और न ही शब्दों से समझा जा सकता है।

जिस व्यक्ति को भक्ति प्राप्त को जाती है तो वह व्यक्ति भगवान को ही देखता है, भगवान को ही सुनता है, भगवान के बारे में ही बोलता है।