एक सच्चे गृहस्थ को आत्म साक्षात्कार करने में कोई कठिनाई नहीं होती है।
यदि कोई सच्चा गृहस्थ है तो उसका घर स्वर्ग बन जाता है, क्योंकि सच्चे गृहस्थ में आत्म-नियंत्रण, आत्म-समपर्ण सेवा-भाव और त्याग की भावना होती है।
एक साधु बनने की अपेक्षा, एक सच्चा गृहस्थ बनना अधिक श्रेष्ठ होता है।