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आध्यात्मिक विचार - 23-02-2011
संत पुरूष वेद-पुराण रूपी समुद्र से, वैराग्य रूपी मंदराचल को मथानी बनाकर, काम, क्रोध, लोभ रूप असुरों और धैर्य, क्षमा, संयम रूप देवताओं द्वारा मोह रूपी वासुकि नाग की रस्सी से मथ कर कथा रूपी अमृत को निकाल कर पीतें रहते है।
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