आध्यात्मिक विचार - 05-03-2011


प्रत्येक जीव के ऊपर ईश्वर के दो ऋण हैं, एक आत्मा जो कि परमात्मा का ऋण है और दूसरा शरीर जो कि प्रकृति का ऋण है, इन ऋण से मुक्त होने के लिये ही ईश्वर ने सभी मनुष्यों को मन, बुद्धि और शरीर दिया है।

प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के हर पल को बुद्धि के द्वारा मन को परमात्मा को सोंपना है, और बुद्धि के द्वारा ही शरीर को प्रकृति को सोंपना है, जब तक व्यक्ति अपने गुरु से इन दोनों ऋणों से मुक्त होने की विधि जान नहीं लेता है तब तक कोई भी व्यक्ति इन दोनों ऋणों से मुक्त नहीं हो सकता है।

जब तक व्यक्ति इन ऋणों से मुक्त नहीं हो जाता है तब तक कोई भी व्यक्ति संसार चक्र से मुक्त नहीं हो सकता है।