आध्यात्मिक विचार - 18-03-2011

व्यक्ति जब तक पाप और पुण्य करता रहता है तब तक प्रकृति के तीनों गुणों के आधीन होकर जन्म और मृत्यु के बंधन में ही पड़ा रहता है।

पाप का फल दुख और पुण्य का फल सुख होता है, पाप का फल भोगने के किये संसार में आना पड़ता है तो पुण्य का फल भी भोगने के लिये भी संसार में आना ही पड़ता है।

जब व्यक्ति अपने सभी कर्मों के फलों को भगवान को सोंपने लगता है तब वह कर्म बन्धन से मुक्त होने लगता है।