आध्यात्मिक विचार - 23-04-2011

कर्म के सिद्धान्त के अन्तर्गत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को क्रम-क्रम से चलकर निष्काम भाव से पालन करना ही भगवान की सच्ची भक्ति कहलाती है।

जो व्यक्ति शरीर में रहते हुए स्वयं को सभी कर्म बन्धन से मुक्त अनुभव कर लेता है, और जीवन की अन्तिम श्वाँस तक मुक्त भाव में स्थिर रहता है, केवल वही जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होता है।

जो जीवात्मा मनुष्य जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करके इस संसार में फ़िर कभी लौटकर नही आती है, वह जीवात्मा भगवान के परम-धाम में नित्य शाश्वत जीवन को प्राप्त कर भगवान के साथ नित्य रमण करती है।