आध्यात्मिक विचार - 29-04-2011

व्यक्ति के मन के दुःख का कारण छः विकार (कामना, क्रोध, मद, लोभ, मोह और मत्सर) होते हैं, लेकिन इन सब विकारों की जननी मात्र कामना होती है।

व्यक्ति की कामना पूर्ति में व्यवधान होने पर क्रोध उत्पन्न होता है, क्रोध से मद (अहंकार) उत्पन्न होता है, अहंकार से लोभ उत्पन्न होता है, लोभ से मोह उत्पन्न होता है, मोहग्रस्त होने के कारण मत्सरता (शत्रुता का भाव) उत्पन होता है।

कामनाओं का अन्त कभी भी सीधे नहीं हो सकता है, मत्सरता के त्याग से मोह का त्याग होता है, मोह के त्याग से लोभ का त्याग होता है, लोभ के त्याग से अहंकार का त्याग होता है, अहंकार के त्याग से क्रोध का त्याग होता है, क्रोध का त्याग हो जाने पर कामनाओं का अन्त स्वतः ही हो जाता है।

जो व्यक्ति इस विधि को क्रमशः अपनाता है वह शीघ्र ही परम-सिद्धि को प्राप्त कर पाता है।