आध्यात्मिक विचार - 07-05-2011

जो जीवात्मा अपने स्वभाव को वृक्ष से गिरे सूखे पत्ते की तरह बना लेता है, वह शरीर में रहकर भी मुक्त रहती है।

जिस प्रकार वृक्ष से गिरे सूखे पत्ते को नहीं पता होता कि वायु उसे कब एक स्थान से ले जाकर न जाने किस स्थान पर ले जाती है, वह कभी विरोध नहीं करता है।

उसी प्रकार जो व्यक्ति न तो किसी का विरोध करता है और न ही किसी के विरोध करने से विचलित होता है, वही व्यक्ति जीवन मुक्त आनन्द को भोगकर परमगति को प्राप्त होत है।